नवकार मंत्र : नमो अरिहंताणम । नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्जायाणम । नमो लोए सव्व साहूणम । एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणों । मंगलाणम च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं ।
कौन हूँ मैं
मैं जिनशरणं हूँ, सुकून और शाति का अदभूत संगम हू ँ। मुझ से भवसागर तिरने का रास्ता मिलता है। मेरी माटी का जो स्पर्श करता है, अनायास ही बर्हि यात्री अंर्तयात्री हो जाता है। यह अपान्वेषी हो जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य की बात करो तो मेरे चारों तरफ दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली है। और वर्षाकाल में तो मेरी छटा ही निराली हो जाती ह ै। लोग मुझमें अल्प विश्राम करने आते हैं और चिरंतन ठहराव ढूंढने लगते है, जो भी मेरे दर तक आता है, वह ज िनशरणं गच्छामि कहता है और मेरी अनुभूति करके जिन शरणं पळज्जामि में पहुँच जाता है, क्योंकि मैं जि नशरणं हूँ।






